अंधेर नगरी – चौपट राजा
एक राज्य था जो मूर्खता के साथ-साथ मंद बुद्धि के लिए प्रसिद्ध था। इस वजह से प्रजा के साथ उसके अपने मंत्री तक उसके सामने कांपते थे। न जाने कब किसी मंत्री से कोई गलती हो जाए और राजा उसे ही फांसी पर लटकवा दे
एक दिन दरबार चल रहा था कि मुरली नमक दुकानदार रोता चिल्लाता हुआ वहां पहुंचा। राजा ने जब उसे इतना दुखी देखा तो पुछा ” क्या हुआ, जो इतना संताप कर रहे हो। ” तब मुरली ने आप बीती सुनाई ” महाराज, कल शाम मेरी पत्नी ने खाना खाया और सो गयी। आज सुबह देखा तो वह मरी पड़ी थी।
राजा ने पुछा ” तो तुम हमारे पास क्या करने आए हो।”
मुरली ने हाथ जोड़ कर विनती की ” महाराज, कल रात उसने अनाज की रोटी खायी थी और मैंने सिर्फ चावल खाए थे। इसका मतलब है की अनाज जहरीला था जिस कारण मेरी पत्नी की मौत हुई। मुझे न्याय चाहिए।”
” तुमने अनाज कहाँ से खरीदा था।” पूछे जाने पर मुरली ने कहा ” मैंने तो आटा गंगू की दुकान से खरीदा था।”
राजा ने सैनिकों को तुरंत गंगू को पकड़ लाने को कहा। गंगू को जब दरबार में पेश किया गया तो उसने कहा ” महाराज, मैं तो सिर्फ अनाज पीस कर आटा ही बेचता हूँ, अनाज तो मैं रामु किसान से लेता हूँ।”
अब राजा ने रामु किसान को पकड़ लाने के लिए सैनिक दौड़ा दिए। रामु किसान जब सैनिकों से घिरा, घबराता हुआ दरबार में दाखिल हुआ तो फूट-फूट कर रोने लगा ” सरकार, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मैं तो अनाज उसी बीज से उगाता हूँ जो केवल नाम का बीज व्यापारी मुझे बेचता है।”
राजा का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। उसने तुरंत केवल बीज व्यापारी को हाज़िर करने को कहा। केवल बीज व्यापारी को बंदी बना जब दरबार में राजा के सामने खड़ा किया तो वह गिड़गिड़ा कर कहने लगा ” हुजूर, मेरा कहा माफ़ हो, मैं तो वही बीज इन किसानों को बेचता हूँ जो राजकीय भण्डार से मुझे मिलता है। इसमें मेरी कोई गलती नहीं है।”
यह सुन राजा का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा था। आखिर यह हो क्या रहा है। मुरली की पत्नी का निधन हो गया है और मैं अभी तक दोषी को पकड़ सजा नहीं सुना पाया। प्रजा क्या सोचेगी मेरी बारे में।
राजा ने तुरंत राजकीय खाद्य मंत्री को पकड़ लाने का ऐलान किया। ऐलान क्या करना था, राजकीय खाद्य मंत्री तो पहले से ही दरबार में मौजूद थे। फ़ौरन उठे और राजा के सामने प्रस्तुत हो गए। राजा के पूछे जाने पर कि क्या उनके मंत्रालय से ही बीज बेचा जाता है। तो खाद्य मंत्री ने स्वीकार कर लिया।
बस फिर क्या था, मुजरिम राजा ने ढून्ढ ही लिया था। अब देर करना उचित नहीं होगा इसलिए आनन-फानन में उन्होंने राजकीय खाद्य मंत्री को फांसी की सजा सुना दी।
खाद्य मंत्री तो डर के मारे कांपने लगा और दरबार में उपस्तित सभी मंत्रीगण हाहाकार करने लगे। राजा के अटल फैसलों से परिचित सैनिकों ने फांसी की तैयारी भी शुरू कर दी। उन्हें मालूम था कि फांसी तो होगी ही।
आखिर, खाद्य मंत्री को फांसी देने के लिए फांसी के तख्ते पर खड़ा किया गया तो वह टूट गया। खाद्य मंत्री एक अच्छी डील-डोल वाला व्यक्ति था, उसका वजन ही इतना था कि मामूली लकड़ी के तख्ते उसके वजन को संभाल नहीं पा रहे थे।
जब दो तीन तख्ते टूट गये तो सैनिक दौड़ते हुए राजा के पास आए और बोले ” हुज़ूर, खाद्य मंत्री का तो वजन ही इतना है कि फांसी के तख्ते पर चढ़ते ही टूट जाता है। मोटी लकड़ी के तख्ते बनवाने में तो दो तीन दिन का समय लगेगा। आप ही बताएं कि उन्हें फांसी कैसे दें।”
यह सुन राजा ने नया एलान किया ” न्याय हो चुका है। फांसी तो आज ही होगी। अगर खाद्य मंत्री अगर भारी है, तो किसी भी पतले मंत्री की फांसी दे दो।”
और सैनिकों ने जो ही भी पतला मंत्री सामने दिखा उसे पकड़ कर फ़ांसी दे दी।
राजा न्याय और प्रगति का प्रतीक होता है। लेकिन जिस राज्य का राजा ऐसा मूर्ख हो उस राज्य के मंगल की कल्पना करना भी एक मूर्खता ही है।